भोजन हमारे शरीर को कई आयामों से प्रभावित करता है । भोजन करते समय व्यक्ति की मानसिक दशा, स्वच्छता, उसके चारों तरफ का वातावरण और विशेष रूप से भोजन बनाने व खाने के बर्तनों को लेकर कई नियम बनाए गए हैं
शास्त्रों में कहा गया है, जैसा अन्न वैसा मन । यानी जिस तरह का अन्न हम ग्रहण करेंगे, वैसे ही हमारे विचार भी होंगे । इसी प्रकार जिस तरह के पात्र में हम भोजन करेंगे, उसी तरह हमारा स्वास्थ्य भी होगा । आरंभ से ही हमारी संस्कृति में धातुओं के बने बर्तनों में भोजन की परंपरा रही है । इस बात का वर्णन शास्त्रों में किया गया है । कि किस तरह के बर्तनों में भोजन पकाना खाना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद रहता है ।
* काँसे के पात्र को सर्वाधिक पवित्र एवं सुद्ध माना जाता है । इसमें भोजन करने से बुद्धि बढ़ती है और रक्त पित्त, त्वचा विकार, यकृत एवं हृदय विकार से पीड़ित व्यक्तियों व उष्ण प्रकृति के व्यक्ति को लाभ होता है ।
* लोहे की कढ़ाई में सब्जी बनाना या तवे पर रोटी सेकने से रक्त तथा शरीर में लौह तत्व में वृद्धि होती है । लेकिन लोहे के बर्तन में भोजन करने से बचना चाहिए । इससे बुद्धि क्षीण होती है ।
* यदि चांदी से बने पत्रों में पेय पदार्थ के लिए जाए, तो इसमें मौजूद कैल्शियम से शरीर को लाभ होता है । लेकिन चांदी के बर्तनों में खट्टे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए ।
* पीतल के बर्तनों में भोजन पकाना या करना श्रेयस्कर हे पर बिना कलई किए इन बर्तनों का प्रयोग निषेद किया गया है ।
* रात में तांबे के बर्तन में पानी रखकर सुबह उस पानी का सेवन करने से पेट से संबंधित कई व्याधियां दूर हो जाती हैं । एल्युमीनियम से बने बर्तनों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए । इसके बर्तनों पर एल्युमीनियम आक्साइड की परत जम जाती है, जो पाचन तंत्र और हृदय पर दुष्प्रभाव डालती हैं ।
* इसके के बर्तनों में भोजन करने से मुंह में छाले, पेट में अल्सर, पथरी, अपेंडिसाइटिस, माइग्रेन, जोड़ों में दर्द, ह्रदय रोग, सिर दर्द, डिप्रेशन, पक्षाघात अदि बीमारियां होने का खतरा रहता है ।
* आजकल धातुओं के अलावा प्लास्टिक फाइबर या थर्माकोल से बने बर्तन भी बाजार में उपलब्ध होने लगे हैं । इन पौधों में भोजन करने से इनमें मौजूद विषैले रसायन हमारे शरीर में प्रवेश कर रोग उत्पन्न करते हैं ।
* सिल्वर फॉयल का प्रयोग स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं को दावत देता है ।
* यदि नियमित रूप से माइक्रोवेव ओवन में बने भोजन का उपयोग करते हैं, तो शरीर के अंगों तथा तंत्रों में विकृति पैदा होने की संभावना होती है ।
* केला, पलाश अथवा बढ़ वृक्ष के पत्तों पर भोजन करना हमेशा लाभप्रद माना जाता है । ग्रंथों में वर्णित है कि चतुर्मास में इन पत्तों पर एक बार भी भोजन किया जाए, तो भोजन एकादशी व्रत के समान फल दायक तथा पापों का नाश करने वाला हो जाता है ।